असुरों सा हर तौर दिखाई देता है ।
छल–प्रपंच का दौर दिखाई देता है ।
उनको अपनी चुपड़ी में सुख कब जिनको
बड़ा पराया कौर दिखाई देता है ।
इंसां फितरत से मामा मारीच हुआ
मन कुछ है तन और दिखाई देता है ।
पुरुषोत्तम की नगरी में ही आज नहीं
मर्यादा को ठौर दिखाई देता है ।
भटक रहे हैं राम अभी भी जंगल में
रावण ही सिरमौर दिखाई देता है
छल–प्रपंच का दौर दिखाई देता है ।
उनको अपनी चुपड़ी में सुख कब जिनको
बड़ा पराया कौर दिखाई देता है ।
इंसां फितरत से मामा मारीच हुआ
मन कुछ है तन और दिखाई देता है ।
पुरुषोत्तम की नगरी में ही आज नहीं
मर्यादा को ठौर दिखाई देता है ।
भटक रहे हैं राम अभी भी जंगल में
रावण ही सिरमौर दिखाई देता है
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