गजल

Friday, 20 December 2013

रावण ही सिरमौर दिखाई देता है

असुरों सा हर तौर दिखाई देता है ।
छल–प्रपंच का दौर दिखाई देता है ।

उनको अपनी चुपड़ी में सुख कब जिनको
बड़ा पराया कौर दिखाई देता है ।

इंसां फितरत से मामा मारीच हुआ
मन कुछ है तन और दिखाई देता है ।

पुरुषोत्तम की नगरी में ही आज नहीं
मर्यादा को ठौर दिखाई देता है ।

भटक रहे हैं राम अभी भी जंगल में
रावण ही सिरमौर दिखाई देता है

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