खो गईं सब , आपसी तकरार में ।
अब नहीं वो खुशबुएँ , त्यौहार में।
बात अच्छी, रह गई बस बात भर
कब किया शामिल इसे, व्यवहार में।
बांग मुर्गे की, न चिड़ियों की चहक
हो कहाँ से ताजगी, भिनसार में ।
कत्ल, दंगे, रेप, घोटाले , गबन
अब पढ़ोगे और क्या, अखबार में।
स्वार्थ की किश्ती बचाते हम फिरे
छोड़कर नाते सभी, मंझधार में ।
एक दो बच्चे, मियां–बीबी फक़त
है बचा ही कौन अब, परिवार में।
अब नहीं वो खुशबुएँ , त्यौहार में।
बात अच्छी, रह गई बस बात भर
कब किया शामिल इसे, व्यवहार में।
बांग मुर्गे की, न चिड़ियों की चहक
हो कहाँ से ताजगी, भिनसार में ।
कत्ल, दंगे, रेप, घोटाले , गबन
अब पढ़ोगे और क्या, अखबार में।
स्वार्थ की किश्ती बचाते हम फिरे
छोड़कर नाते सभी, मंझधार में ।
एक दो बच्चे, मियां–बीबी फक़त
है बचा ही कौन अब, परिवार में।
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