गजल

Wednesday, 14 August 2013

मोहन–बम चुप्पी वाले

नाक तले गड़बड़झाले हैं।
पर मुखिया के मुँह, ताले हैं।

काम सभी उनके हैं काले 
जो उजली बातों वाले हैं।

डर उनसे ही है लुटने का
जो गुलशन के रखवाले हैं।

भैंस हमेशा से है उनकी
जो लाठी–डंडों वाले हैं।

गटर सियासत का है जिसमें
मिलते सब गँदले नाले हैं।

अम्न बहाली के रस्तों में
पोशीदा शातिर चालें हैं।

सरहद को फौरी उत्तर में
मोहन–बम चुप्पी वाले हैं

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