गजल

Monday, 26 August 2013

दाग अच्छे हैँ

गर सियासत में घुसे हों, नाग अच्छे हैं ।
माननीयों पर लगें ,  तो दाग अच्छे  हैँ ।

कुछ निवाले चुराकर,हैं जेल में मुफलिस
लूटते जो मुल्क को, वो साफ–सच्चे हैं।

अर्दली ने चाय पी तो, घूसखोरी है
रिश्वतें मंत्री को, रस्मी भेंट–भत्ते हैं।

बास की एम्बेसडर जाकर वहीं फिसली
फाइलों पर जिस जगह चकरोट पक्के हैं।

रच दिये हैं व्यूह नफरत के,मियाँ अब तो
सियासी रणबाँकुरों की जंग फत्तेह है।

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