गजल

Tuesday, 5 March 2013

हजारों हैं रिश्ते, जो गिनती में तुम हो



तुम्हारे बिना तो, ये जीवन जहर है।
हूँ जिन्दा, तुम्हारी दुआ का असर है।

शबीहात से तो बहलता नहीं दिल
जवाँ है मुहब्बत, न अब कम–उमर है।

भरी बज्म में भी, ये तन्हा मेरा मन
शहर की सड़क पर खड़ा इक शज़र है।

हजारों हैं रिश्ते, जो गिनती में तुम हो
नहीं तुम, तो रिश्तों की गिनती सिफ़र है।

ये आले, ये चौखट, ये रातों के सपने
ये मेरा नहीं, तेरी यादों का घर है।

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