गजल

Tuesday, 5 March 2013

वो ऐसे, अपनी भूलों की सफाई दे रहा है


ज़माने के गुनाहों की दुहाई दे रहा है।
वो ऐसे, अपनी भूलों की सफाई दे रहा है।

पुलोवर जिन्दगी का तो वही आकार लेगा
उसे तू , जैसे कर्मों की सलाई दे रहा है।

पड़े हैं मोह के जाले तुम्हारी जेहनियत पर
नजर को तो, बुरा–अच्छा दिखाई दे रहा है।

वो बूढ़ा बोझ था जिसको,वही, मरने पे उसके
दहाड़ें मारकर, शव को विदाई दे रहा है।

रिआया को रियायत के सियासी वादे, जैसे
जिबह से छूट, बकरे को, कसाई दे रहा है।

किसी दिन तो कोई लम्बी बुराई पायेगा
जहाँ को वो,खुले दिल से भलाई दे रहा है।

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