गजल

Tuesday, 5 March 2013

बात उस तक जायगी


आग में उसके हृदय की दह सको तो।
बात उस तक जायगी जो कह सको तो।

पीर तो बँटती नहीं पर खुशी होगी
हाथ मेरा इस घड़ी तुम गह सको तो।

साथ मेरे स्वप्न बुनने चले आना
पत्थरों में हकीक़त के डह सको तो।

महकती हैं बुरीअच्छी सभी यादें 
वर्कजीस्त सलीके से तह सको तो।

आसमां तक हूँ खड़ा मैं तुम्हारे संग
तुम ज़मीं तक मेरी खातिर ढह सको तो

नेह से बनते हैं घर ईंटों से नहीं
झोपड़ी भी है महल गर रह सको तो।

मन हो जाता है व्यापारी



क्या कहने से क्या सुनने से हम कितनी बार मिले।
हमको या तुमको जल्दी थी हम जितनी बार मिले ।

इस तपती दोपहरी को ही आओ कुछ पल जी लें,
क्या जाने फुरसत हो ना हो जब ठंडी शाम ढले ।

इन रूठी पलकों के पीछे की चाहत को पहचानो
यह प्यार हमारा है तुमपर मत समझो यार गिले।

नेहों की पावन कुटिया सी जब याद तुम्हारी आती
इक खुशबू से भर जाते हैं मन के वीरान किले ।

है रात भली कुछ दिल से कहने,दिल की सुनने को
मन हो जाता है व्यापारी हर दिन जब धूप खिले ।

हजारों हैं रिश्ते, जो गिनती में तुम हो



तुम्हारे बिना तो, ये जीवन जहर है।
हूँ जिन्दा, तुम्हारी दुआ का असर है।

शबीहात से तो बहलता नहीं दिल
जवाँ है मुहब्बत, न अब कम–उमर है।

भरी बज्म में भी, ये तन्हा मेरा मन
शहर की सड़क पर खड़ा इक शज़र है।

हजारों हैं रिश्ते, जो गिनती में तुम हो
नहीं तुम, तो रिश्तों की गिनती सिफ़र है।

ये आले, ये चौखट, ये रातों के सपने
ये मेरा नहीं, तेरी यादों का घर है।

नाम को, होली मिलना भी, कोई बात हुई



ईद हिन्दू की, मुसलमाँ की होली आज हुई।
ले के त्यौहारों को लड़ना भी, कोई बात हुई।

फासले रक्खो, गुनाहों से, गुनहगारों से
ये मजहबों का फासला भी, कोई बात हुई।

मसअले हैं बहुत, इंसां की तरक्की से जुड़े
काशी, काबा का मसअला भी, कोई बात हुई।

फैसले, हम वही मानेंगे जो संसद में होंगे
धर्म–संसद का फैसला भी, कोई बात हुई।

यूँ मिलो अब गले कि दिल, दिल से मिल जायें
नाम को, होली मिलना भी, कोई बात हुई।

वो ऐसे, अपनी भूलों की सफाई दे रहा है


ज़माने के गुनाहों की दुहाई दे रहा है।
वो ऐसे, अपनी भूलों की सफाई दे रहा है।

पुलोवर जिन्दगी का तो वही आकार लेगा
उसे तू , जैसे कर्मों की सलाई दे रहा है।

पड़े हैं मोह के जाले तुम्हारी जेहनियत पर
नजर को तो, बुरा–अच्छा दिखाई दे रहा है।

वो बूढ़ा बोझ था जिसको,वही, मरने पे उसके
दहाड़ें मारकर, शव को विदाई दे रहा है।

रिआया को रियायत के सियासी वादे, जैसे
जिबह से छूट, बकरे को, कसाई दे रहा है।

किसी दिन तो कोई लम्बी बुराई पायेगा
जहाँ को वो,खुले दिल से भलाई दे रहा है।

Saturday, 2 March 2013

मन तो तुलसी नहीं हो सका


    उनके दर दूध मेवे बरसते रहे।
    और हम जूठनों को तरसते रहे।

    अपने घर में रखी खीर औ इडलियाँ
    भात वादों के हमको परसते रहे।

   धरती तक बूँद इक भी नहीं आ सकी
   मेघ तो आसमां पर गरजते रहे ।

   हमने सौ झूठ बोले बिना ख़ौफ के
   एक सच बोलने में लरज़ते रहे ।

   मन तो तुलसी नहीं हो सका आज भी
   नाम तो राम का रोज भजते रहे ।